- पीयूष द्विवेदी भारत
“हेलो!”
“नमस्ते सर! मै सीमा ।”
“ओहो! कहो..मेरी ‘आफत की गुड़िया’ कैसी हो ?”
“फाइन सर......आप.......? आज शाम आपको मेरे घर आना है ।”
“तुम्हारे घर..........पर क्यों ?”
“गवाही के लिए ।”
“गवाही के लिए.. क्या अनाप-शनाप बकती रहती हो...”
परिकथा आवरण चित्र |
“कुछ अनाप-शनाप नही है, सर! शाम
में आईये, सब पता चल जाएगा । वैसे, आपको बता दू, ये ‘इनविटेशन’ मुझसे ज्यादा पापा
की तरफ से है ।” ये कहके मेरा जवाब सुने बगैर उधर से फोन काट दिया गया और इधर मै
फोन कान से लगाए, मन में तमाम अज्ञात-आशंकाएं लिए, खड़ा
रहा । मेरी इन अज्ञात-आशंकाओं के लिए कारण-तत्व ये था कि फोन पर सीमा थी । सीमा,
यूँ तो मेरे कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले तमाम छात्र-छात्राओं में से एक है, मगर
उसके विचार-व्यवहार इतने विलक्षण और विरोधी हैं कि उसका नाम आते ही मुझे किसी न
किसी आफत का अंदेशा होने लगता है । मेरे लिए सीमा माने आफत और इसीलिए मैंने उसका
नाम भी रखा है – आफत की गुड़िया । यहाँ ‘आफत की पुड़िया’ की बजाय ‘आफत की गुड़िया’
प्रयुक्त करने के लिए कारण है, उसकी गुड़िया जैसी खूबसूरती । जी हाँ, वो बहुत
खूबसूरत है । पर, ये खूबसूरती किसी अप्सरा की नही, मासूम बच्चे की है । उसकी
शक्ल-सूरत देखकर निश्चित ही कोई भी उसे एक सामान्य आचार-विचार वाली सीधी-सादी लड़की
ही समझेगा । मैं भी समझता था, पर मेरी इस
समझ को एक वाकये ने पूरी तरह से बदल के रख दिया । हुआ यूँ कि उस रोज मेरे कोचिंग
सेंटर में बिजली खराब थी । चूंकि, गर्मी का मौसम था, इसलिए पसीने से हमारी (मेरी
और मेरे विद्यार्थियों की) हालत खराब हो रही थी । गर्मी से परेशान मैंने अपना
कुर्ता उतार दिया और सिर्फ गंजी पर हो गया । गर्मी से तो फुल बाजू के कुर्ते वाले
विद्यार्थी भी परेशान थे, मुझे गंजी पर देख उन्हें मौका मिला और उन्होंने भी अपनी
परेशानी बतानी शुरू कर दी । मुझे उनकी बात जायज लगी और मैंने लड़कों की ओर देखते
हुए कहा कि जिनको गर्मी से परेशानी हो, वो अपनी कमीज उतार लें । अप्रत्यक्ष रूप से
ही सही, मेरी ये अनुमति सिर्फ लड़कों के लिए थी । लड़कों ने अपनी कमीजें उतार दी और
पढ़ाई में लग गए । फुल बाजू की कमीज कई लड़कियों ने भी पहनी थी, पर वो शांत रहीं ।
कुछ मिनट ही बीते थे कि तभी अचानक कुछ सुगबुगाहट हुई । मैंने ब्लैकबोर्ड की तरफ से
नज़र घुमाकर देखा, तो जो दिखा, वो बड़ा ही अप्रत्याशित था । एक लड़की बड़े ही सहज भाव
से अपनी कमीज उतार कर बैठी, पढाई में लगी
थी । चूंकि, स्त्रियों के अंतर्वस्त्र, पुरुषों की अपेक्षा कुछ अधिक छोटे होते
हैं, इसलिए उसके कमर से ऊपर का अधिकाधिक हिस्सा पूरी तरह से नग्न दिख रहा था ।
उसकी इस स्थिति पर कुछ लड़के शर्म से चेहरा किताब में गडाए हुए थे, तो कुछ तिरछी
नज़रों से उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुरा रहे थे । लड़कियों के चेहरे पर भी हवाइयां उड़
रही थीं । पर उसे तो जैसे इन सबकी कोई परवाह ही न हो, बड़ी ही सहजता से अपनी पढाई
में मस्त थी । वो थी सीमा । आखिर मुझसे नही रहा गया और मै चिल्लाया, ‘‘क्या
बेहूदगी है ये ?’’ मेरे ऐसे चिल्लाने पर उसने अपनी नजरें ऊपर उठाई
और मुझे प्रश्नसूचक निगाहों से देखने लगी । मै फिर बोला, “हा, तुम्ही को कह रहा
हूँ । शर्म-हया बेचकर आयी हो क्या ? कमीज क्यों उतारी अपनी ?”
“गर्मी मुझे भी लगती...”
“और लड़कियां नही हैं यहाँ...? उनको नही लगती गर्मी ?” उसकी बात काटके
बोल पड़ा था मै ।
“किसीके अंदर बर्फ जम रही हो, तो मुझे नही पता...पर मुझे तो बहुत
गर्मी लग रही है और सर आपने भी...और लड़कों ने भी तो शर्ट उतार....”
“बेशर्मी की हद है...” जोर से चिल्लाया मै, “लड़कों ने उतारा तो इसका
क्या मतलब...कि तुम भी...आउट...आउट ऑफ हियर ।”
वो बड़ी सहजता से बाहर चली गई । कोचिंग खत्म होने के बाद मै उसके बारे
में थोड़ी देर तक सोचता रहा । मन ही मन इरादा किया कि उसे अपने कोचिंग सेंटर से
निकाल दूं, पर फिर ख्याल आया कि क्यों न इस संबंध में एकबार उसके माता-पिता से बात
की जाए । उसी शाम मै उसके पिता से मिला । मुझे
पूरी उम्मीद थी कि इस घटना के बारे में जानकार वो आश्चर्य और गुस्से से भर जाएंगे
। पर मुझे झटका तब लगा, जब मेरी बात सुनकर उनके चेहरे पर आश्चर्य की बजाय दुख और
निराशा के भाव आए । अवरुद्ध कंठ से कहा उन्होंने, “आपके यहाँ तो पढ़ती है, सर! एक न एक दिन तो जानना ही था आपको । थक गया हूँ
इस लड़की से...आजिज आ गया है मन! जी
करता है कि...”
“...मतलब क्या है आपका ? साफ़-साफ़ बताइए ।” मै उनकी बात काटके बोल पड़ा
।
“साफ़-साफ़ क्या कहूँ, सर! पर नही
कहूंगा तो भी क्या फायदा..जब अपना ही सिक्का...कभी-कभी तो सोचता हूँ कि जाने किस घड़ी
में उसका नाम सीमा रखा था, किसी सीमा में रहना तो जैसे उसने जाना ही नही । लाख
समझा लूं, पर कोई मतलब नही...करेगी वो अपने ही मन की । मन का
खाना-पीना-आना-जाना-पहनना-रहना और भी सबकुछ....यहाँ तक भी ठीक है । आजकल लड़कियां
प्रगतिशील हैं, पर इसका ये तो अर्थ नही कि उनकी सीमाएं समाप्त हो गईं । कुछ तो
सीमा होती हैं एक लड़की की ।”
ये सब सुनकर दुविधात्मक स्थिति हो गई थी मेरी । सूझ नही रहा था क्या
कहूँ ? कहने तो यही आया था कि लड़की को सुधारों, वरना अपने कोचिंग सेंटर से निकाल
दूंगा । पर अब एक पिता की विवशता और व्यथा देख ऐसा कुछ भी कहना कठिन हो रहा था ।
अपनी अवमानना के कारण उपजे क्रोध ने जो कटु शब्द पैदा किए थे, उनको एक पिता की
व्यथा-धार ने मिटा दिया । कुछ पल सोचने के बाद आखिर बड़ी विनम्रता से मै बोला,
“मुझे तो अंदाज़ा ही नही था कि शक्ल से मासूम और कोमल सी दिखने वाली लड़की ऐसी उद्दण्ड भी हो सकती है..। वैसे, आपने
कभी जानने की कोशिश नही की कि क्या चाहती है वो ? ऐसी क्यों हो गई है ?”
“नही...पता, सर..” ये कहते वक्त वो काफी असहज लग रहे थे ।
“पर इस हालत में तो उसे पढ़ा पाना मुश्किल होगा, अनुशासन भी कोई चीज
होती है ।”
“आपसे पहले इसी बात पर दो-तीन जगहों से निकाली जा चुकी है...आप भी
निकाल सकते हैं । पर इतना कर सकें तो बड़ी कृपा हो कि अगले महीने होने वाले टेस्ट
तक उसे पढ़ा दीजिए..फिर आपकी मर्जी ?” ये कहते हुए उनके मन की व्यथा आँखों में उतर
आई ।
“चलिए देखते हैं, क्या हो सकता है ।” ये कहके मै तुरंत वहाँ से चल
दिया । अब मै उस व्यक्ति की पीड़ा का और सामना नही कर सकता था । काफी सोचने के बाद,
मैंने निर्णय लिया कि सीमा से एकबार खुद बात करके उसे समझाने की कोशिश करूंगा ।
अगर समझ गई तो ठीक, वरना तो उसे निकालना ही पड़ेगा । अगली सुबह, कोचिंग क्लास खत्म
होने के बाद मै सीमा से अकेले में मिला । उससे किसी माफ़ी की उम्मीद मुझे थी भी नही
और उसने मांगी भी नही । बाते शुरू करते हुए मै बोला, “कल तुमने जो किया उसके बाद
मेरे लिए तुम्हे पढ़ा पाना मुश्किल होगा, पर फिर भी तुम्हारे पिता के कहने पर एक
मौका तुम्हे देना चाहता हूँ । मुझे भरोसा दो कि जो कल हुआ, फिर नही होगा ।”
“कल क्या हुआ, सर ? मुझे गर्मी लग रही थी इसलिए मैंने शर्ट उतार दी ।
अब अगर इससे आपको दिक्कत हो तो आप मुझे यहाँ से निकाल ही दीजिए । क्योंकि मै ऐसे
नही रह सकती जिससे जीने में ही मुश्किल होने लगे ।” बड़ा ही सहज स्वर था उसका ।
उसकी ये बात सुनकर क्रोध तो बहुत आया मुझे, पर बमुश्किल खुद पर जब्त करके मैंने
कहा, “एक तरफ तुम्हारे पिता तुम्हारे जीवन को लेकर परेशान हैं और तुम हो कि कोई
परवाह ही नही । आखिर क्या चाहती हो तुम ? क्यों इस तरह से अपनी जिन्दगी बेकार कर
रही हो ?”
“ये मेरी जिन्दगी है । मै चाहे जो करूँ ।”
अब मेरे सब्र का बाँध टूट चुका था । मै पूरे आवेश में बोला, “तुमसे
बात करने का कोई लाभ नही...जाओ, तुरंत निकलो यहाँ से...तरस आती है तुम्हारे पिता
पर...दुख होता है उस बुजुर्ग के लिए जिसकी तुम्हारे जैसी बेटी है...निकलो,
तुरंत..।”
कहानी |
“जा ही रही हूँ, सर । आपको तरस आ रही है, दुख हो रहा है न उनके
लिए...मुझे भी किसी पर बहुत तरस आता है..दुख भी होता है और बस इसीलिए मै आज ऐसी बन
चुकी हूँ...।” इतना कहके वो चली गई । उसकी ये आखिरी बात मुझे कुछ समझ न आयी । एक
अबूझ पहेली बन गई मेरे लिए, जिसका अर्थ समझना एक शिक्षक के तो नही पर एक लेखक के
ह्रदय को शांत करने के लिए आवश्यक था । जाने क्यों उसकी ये बात मुझे बारबार अपनी तरफ खींच रही थी । कुछ देर सोचने के बाद आखिर
मैंने उसे फोन किया और शाम के समय एक रेस्टोरेंट में मिलने को बुलाया । शाम में हम
मिले ।
“अभी क्यों बुलाया, सर ?” उसने तपाक से पूछा ।
“सुबह तुम्हारी एक बात अधूरी रह गई थी, उसे ही पूरा करने के लिए । वो
क्या कह रही थी तुम, कि तुम्हे भी तरस आती है..तभी तुम ऐसी बन चुकी हो..वगैर वगैर
। मुझे कुछ समझ नही आया...मतलब क्या था तुम्हारा ?”
“अब छोड़िये भी सर..क्या सुबह की बात को लेकर परेशान हो रहे हैं । आप अपना
काम देखिए, मुझे भी दूसरा कोचिंग सेंटर देखना है, चलती हूँ ।” ये कहके वो उठी, तभी
मै बोल पड़ा, “देखो सीमा, तुम्हारे टेस्ट में बहुत कम समय बाकी है । इतनी जल्दी कोई
कोचिंग सेंटर मिलना मुश्किल है, सब जगह आगे की पढाई हो रही होगी । मुझे बताओ कि
आखिर क्या कहना चाहती थी तुम सुबह ? ये भी बताओ कि आखिर क्यों तुम ऐसी हो ? सब
जानने के बाद हो सकता है तुम्हे निकालने का अपना निर्णय बदल दूं...बताओ सीमा ?”
मेरी ये बात सुनकर खिल-खिलाकर हँसी थी वो । बोली, “क्या सर, अब आप ही
रिश्वत देंगे तो स्टुडेंट्स क्या सीखेंगे । कोचिंग सेंटर से नही निकालने का लालच
देकर अपना काम निकालना चाहते हैं । रहने दीजिए, इसकी कोई जरूरत नही । आप यूँ ही
सुनिए, हर घर में औरत है और वो अपने हिस्से के पुरुष को चुपचाप सुन रही है, सह रही
है – मेरे घर में भी मेरी माँ है । बचपन से उसे देखती आयी हूँ कभी पापा तो कभी
भईया को सहते हुए और रोते हुए...उसीपर तरस आता है मुझे...मै अपनी माँ जैसी नही
होना चाहती, इसीलिए ऐसी हूँ ।” इतना कहके वो उठी और बिना रुके तुरंत चल दी । मै
स्तब्ध-सा दो पल तक बैठा शून्य को निहारता रहा । मुझे मेरा उत्तर मिल चुका था,
इसलिए उसे रोका नही । सभी बातें परत दर परत खुल गई थीं और अब उस उद्दण्ड लड़की के
लिए मेरी सोच भी काफी हद तक बदल चुकी थी । अबतक जो सहानुभूति उसके पिता के लिए थी,
अब वो सीमा की हो गई थी । मैंने तय कर लिया कि सीमा मेरे ही कोचिंग सेंटर में
पढ़ेगी । मैंने उसे इस विषय में सूचित कर दिया और वो ससहज अगले दिन से कोचिंग सेंटर
आने लगी.....। आज इस वाकये को हुए कई महीने बीत चुके हैं और अबतक सीमा मुझसे काफी
हद तक घुलमिल गई है । उसकी तरफ से तो ये घुलना-मिलना सामान्य ही है, पर शायद मेरे
लिए नहीं । मै कुछ अलग ही अनुभव करने लगा हूं उसके लिए । कुछ बहुत विशेष । मै
जल्दी ही, सही अवसर देखकर, उसके लिए मेरे मन में उठने वाले अनुभव उसे बता
दूँगा...जल्दी ही!
बहरहाल, अभी स्थिति ये थी कि
अचानक आए उसके इस फोन ने कि शाम में मै उसके घर आऊं, मुझे परेशान कर दिया था ।
मुझे समझ नही आ रहा था कि उस खुराफाती लड़की के दिमाग में क्या है और किसलिए मुझे
बुला रही है ? खैर! अब इन सब बातों का उत्तर तो उसके घर जाकर ही मिलता, अतः मैंने तय किया कि आज शाम उसके घर जरूर जाऊंगा ।
शाम का समय । मै सीमा के घर पहुंचा । पहुँचने के बाद मुझे झटका तब लगा
जब मैंने वहाँ सीमा के परिवार वालों के साथ अपने कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले अतुल
को देखा । फिर मैंने सोचा कि सीमा ने कुछ काम से बुलाया होगा । खैर! सामान्य
शिष्टाचार के बाद हम चाय-नास्ते पर बैठे । थोड़ी-बहुत इधर-उधर की बातें हुईं । पर
इन सबसे इतर मेरे ह्रदय में तो यही बात थी कि ये खुराफाती लड़की क्या करना चाहती है
? आख़िरकार मैं पूछ बैठा, “और मेरी ‘आफत की गुड़िया...कौन सी गवाही के लिए बुलाई हो
मुझे ?” शायद सब इसीका इंतज़ार कर रहे थे कि मै बात शुरू करूँ । अगले ही पल माहौल
में गंभीरता आ गई और उसके पिता बोले, “चलिए न,
बाहर टहलते हुए बात करते हैं ?” मै कुछ समझ नही पाया, पर स्वीकृति दे दिया । हम
दोनों बाहर आ गए । वो बोले, “उस लड़के को देखा आपने..पहचानते तो होंगे ही..?”
“वो अतुल....क्यों क्या बात है ?”
“सीमा उससे शादी करना चाहती है । मुझे तो वो सही नही लग रहा, पर आप के
यहाँ पढ़ता है । सों, सोचा कि आपसे कुछ पता करूँ । कैसा लड़का है ?”
“पर शादी की ऐसी क्या जल्दी है..” एक धक्का सा लगा मुझे, “अभी उमर ही
कितनी है..२०-२१ के आसपास की होगी । अभी तो पढ़ाई का समय...”
“आप जानते हैं कि मै उसे रोक नही सकता । पता नही क्या कर लेगी ।” वो
मेरी बात काटके बोल पड़े, “इसीलिए सोचता
हूँ कि अगर लड़का सही होगा तो शादी कर देंगे ?”
“नही..लड़का भी सही नही है ।” पूरे विश्वास से बोला मै, “नशा करना,
लड़की छेड़ना..यही सब इसके शौक है । कई दफे
तो मैंने खुद इसे सिगरेट के साथ पकड़ा है, पर इसके माता-पिता की वजह से इसे निकाला नही । जरूर ये सीमा को भी
फंसा रहा है ।”
“......” उसके पिता कुछ नही बोले । एक ख़ामोशी छाई रही, पर उस ख़ामोशी
में उनकी विवशता झलकती थी । आखिर वो घर की तरफ मुड़ गए । पीछे-पीछे मै भी चल दिया ।
अंदर पहुंचते ही वो सीमा से मुखातिब हुए, “तो तुम्हे यही मिला...पता है, सर क्या कह
रहे थे.........।” इसके बाद उन्होंने अतुल के विषय में मेरे द्वारा बताई गईं तमाम
बातें वहाँ कह दी ।
“सर ने सही कहा, मगर अब ये बदल चुका है । गलतियाँ किससे नहीं होती, पर...”
सीमा कह ही रही थी कि अतुल बीच में ही बोल पड़ा, “अंकल! मुझसे गलतियाँ हुईं, पर अब
मै वैसा नहीं हूँ..”
“चुप! एकदम चुप!” सीमा के पिता ने अतुल को सिर्फ इतना ही कहा फिर सीमा
से मुखातिब हुए, “अबतक तुमने सबकुछ अपने मन का किया है...पर यहाँ नही..मै इस आवारा
लड़के से तुम्हे शादी नही करने दे सकता । बात खतम ।” फिर अतुल की तरफ देख के बोले,
“तू अभी तक यहीं है ?” उनका ये कहना था कि अतुल वहाँ से निकल लिया ।
“अपने मन का अबतक किया है, अब भी करूंगी...” ये कहके पूरे गुस्से के
साथ कुछ बुदबुदाते हुए सीमा भी कमरे में चली गई । आखिर मै भी चला आया । मुझे
उम्मीद थी कि अतुल की शिकायत के कारण वो मुझसे नाराज होगी । चूंकि, कुछ व्यक्तिगत
कारणों से मैंने अतुल की शिकायत जरा बढ़ा-चढ़ाकर ही कर दी थी । पर आश्चर्य तब हुआ जब
अगले दिन वो एकदम पहले की तरह मुझसे मिली । रात के वाकये के विषय में कोई अधिक बात
नही । मुझे अजीब तो लगा, पर अच्छा भी । मुझे लगा कि वो सम्हल रही है । मैंने तय किया
कि अभी तो नहीं, पर जल्दी ही उचित अवसर देख उसे अपने मन की बात से अवगत करा दूँगा
।
कुछ दिन बीते...। अचानक! एकदिन
वो पढ़ने नही आई । मैंने सोचा कि किसी वजह से नही आई होगी । पर उसी दिन शाम में
उसके पिता का फोन आया, “सर, सीमा आपके घर गई है क्या ?”
कहानी |
“मेरे घर...आज तो वो कोचिंग में ही नही आई...बात क्या है ?” मै
आश्चर्य में था ।
“आज सुबह कॉलेज गई तबसे लौटी ही नही । मुझे लगा कहीं आपके यहाँ गई हो..अच्छा चलिए मै
देखता हूँ ।” ये कहके उन्होंने फोन रख दिया । पर अब मेरा मन बेचैन था । तमाम
अज्ञात आशंकाएं मन में उपज रही थी । इसी उधेड़बुन में अचानक मेरे दिमाग में एक बात
आई और मैंने अपने एक छात्र के पास फोन किया । ये लड़का अतुल के साथ ही पढ़ने आता था
। उससे पूछा, “क्या आज अतुल आया था ?”
“नही, सर! वो तो कई दिन से नही आ रहा ।” इसके बाद मैंने अतुल के घर
फोन किया । पता चला कि वो भी अबतक कॉलेज से घर नही लौटा है । मेरा मन एक अज्ञात
आशंका के वशीभूत होने लगा । मैंने ये बात सीमा के घरवालों को बता दी । पुलिस में
गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज करा दी गई । दो-चार दिन बीते, पर अतुल और सीमा किसीका
कुछ पता नही चला । एक सुबह जब कोचिंग सेंटर पहुंचा तो देखा कि वहाँ सीमा मेरी
प्रतीक्षा कर रही थी । मेरे कुछ कहने से पहले ही वो बोल पड़ी, “मैंने कहा था न कि
अपने मन की करूंगी । कोर्ट में अतुल से शादी कर ली, सर! पहले लिव
इन रिलेशन की सोचे..मगर उसमे खतरा लगा कि कहीं अलग न कर दिए जाएं..पर अब नहीं! अब
इस शादी को कोई खारिज नहीं कर सकता ।” कुछ
पल तक अवाक् सा देखता रह गया मै उसे । अंदर ही अंदर एक टीस सी महसूस हो रही थी ।
लग रहा था कि जैसे कोई बड़ी चीज खो गई हो; अपना
कुछ बहुत विशेष गँवा बैठा हूँ । दिल तो कर रहा था कि जोर से चिल्लाऊं और अपनी उस
आफत की गुड़िया से पूछूं कि उसने ये क्यों किया ? मुझे एकबार बताई तो होती फिर मै
उसे वो बताता जो उसके लिए मेरे ह्रदय में था और जिसे बताने की उत्कट इच्छा को मै
सही अवसर की प्रतीक्षा में रोके हुए था । पर अब इन बातों का कोई विशेष अर्थ नहीं था । रेत हाथ से फिसल
गई थी । अतः तत्कालीन स्थिति
को समझते हुए मैंने खुद को संभाला और बोला, “तुमने अतुल से शादी की ? क्या तुम नही
जानती कि वो कैसा है ?”
“वो जैसा भी हो, मुझे अच्छा लगता है! क्या इतना काफी नहीं है ? हरकोई
अपनी जिन्दगी जीता है, मै भी इसे अपनी शर्तों पर जीना चाहती हूँ । बाकी इन फैसलों का
क्या नतीजा होगा, इसका मुझे कोई अंदाज़ा नही है । मै बस अपनी जिंदगी, अपनी मर्जी से
जी रही हूँ ।”
“चलो जो हुआ सों ठीक...ये बताओ, घर गई थी ?”
“हाँ, अतुल और मै दोनों गए थे । मेरे भी और अतुल के भी, दोनों जगहों
से निकाल दिया गया । कहने को तो सब शहरी, पढ़े-लिखे ही बनते हैं, पर असलियत में कोई
जाति का रोना रो रहा है तो कोई मान-मर्यादा का...हमारी इच्छाओं की कोई कीमत नही है
? धत्त!... पर कोई नही, सर । कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही लेंगे । फ़िलहाल यही कहने आई थी
कि अभी आपकी कोचिंग में नही आ पाऊंगी । फीस देना मुश्किल है । देखते हैं क्या होता
है ।”
“फीस की कोई बात नही..जब हो तब देना..तुम यहाँ आ सकती हो ।” मै आतुर
सा होकर बोला ।
“थैंक्स, सर! पर ये रहने दीजिए, क्योंकि ठीक नही कि मै यहाँ रहूंगी या
कहीं और ? सों, आ पाना भी मुश्किल होगा । हाँ, अगर कभी दिख जाएं तो आप मेरे
घरवालों को बता दीजिएगा कि वो .मुझे कितना भी गलत माने, मुझे कोई पछतावा नही है ।
मैं अपने तरह से अपनी जिन्दगी जीने की कोशिश कर रही हूं । ये सही है या गलत, आगे
क्या होगा, कुछ पता नहीं; पर मेरा यही तरीका है । हरकोई अपने तरह से जीता है, सफल
भी होता और असफल भी! जिन लड़कियों की शादी घरवाले करते हैं, क्या उनकी जिंदगी ख़राब
नहीं होती ? फिर जब एक डिसीजन मैंने लिया है तो इतना हंगामा क्यों ? अच्छा! अभी
चलती हूं सर!”
“पर कहाँ जाओगे तुम लोग ? पैसे हैं ? ये कुछ पैसे ले लो, मदद मिलेगी
।” मैंने उसे रोकते हुए उसकी तरफ कुछ पैसे
बढ़ाए ।
“वेरी वेरी थैंक्स, सर! पर ये नही ले सकती । अब जब लड़ाई ठानी है तो
जैसे भी हो मुकाबला भी कर लेंगे । अच्छा अब चलती हूँ । अगेन एंड अगेन थैंक्स सर!”
इतना कहके वो बिना रुके चली गई और मै मूर्तिवत खड़ा अपलक नेत्रों से उसे जाते हुए देखता रहा । कुछ
ही क्षण में वो मेरी आँखों से ओझल हो गई और इसीके साथ मेरे जीवन का एक
अतिसंक्षिप्त और अतिगुप्त अध्याय विस्तार पाने से पूर्व ही समाप्त हो गया ।
नमस्कार सर् जी.....मुझे कविताऐं लिखने का बड़ा ही शोक है जिसे मैं आपकी पत्रिका में समावेश करना चाहता हु....कृपया मार्गदर्शन देवे....धन्यवाद
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