- पीयूष द्विवेदी भारत
डीएनए |
उल्लेखनीय होगा कि गांधी जी ने कभी भी अंग्रेजी का विरोध नही किया था ! पर बार-बार अगर वो हिंदी के संरक्षण और
संवर्द्धन की बात करते थे तो सिर्फ इसलिए कि उनके राष्ट्रवादी ह्रदय को ये भय था
कि अगर आज हिंदी पर ध्यान नही दिया गया, तो आने वाले समय में हिंदी को अपने ही घर
में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है ! उन्हें अंदेशा था कि कहीं, कोइ अन्य भाषा हिंदी का विकल्प न बन जाए और आखिर आज उनकी इस दुष्कल्पना का क्रितरूप, एक हिंदीभाषी राष्ट्र के सर्वक्षेत्रों में अंग्रेजी के बढ़ते वर्चश्व के तौर पर हमारे सामने है ! यहाँ ये भी ध्यान देना होगा कि गांधी जी ने कभी अंग्रेजी को त्यागने की बात नहीं कही थी, वरन उनका कथनाम ये था कि अंग्रेजी बोलो, पर उसे आत्मसात मत करो, उससे आत्मा से मत जुड़ों ! पर वर्तमान में आधुनिक-युवा का अंग्रेजी-प्रेम आत्मसात करने जैसा ही हो गया है ! इसका सबसे अच्छा प्रमाण ये है कि यहाँ जो बच्चा हिंदी-माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहा है, उसे संज्ञा-सर्वनाम के साथ-साथ नाउन-प्रोनाउन तथा एक-दो के साथ-साथ वन-टू आदि भी पता है ! पर वहीँ अंग्रेजी-माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहा बच्चा सिर्फ नाउन-प्रोनाउन और वन-टू ही जानता है, संज्ञा-सर्वनाम और एक-दो का उसे कोई ज्ञान नही है ! इससे सिर्फ दो ही बातें साफ़ होती हैं कि या तो हिंदी-माध्यम की शिक्षा अंग्रेजी-माध्यम शिक्षा से अधिक गुणवत्तापूर्ण है, या फिर हम हिंदी से अधिक दिल से अंग्रेजी को सीख, समझ और अपना रहे हैं
इससे
कत्तई इंकार नही किया जा सकता कि आज के इस अर्थ-प्रधान युग में आर्थिक-अर्जन के लिए अंग्रेजी-शिक्षा एक अनिवार्य तत्त्व है, पर साथ ही हमें ये कहने में भी कोइ हिचक नहीं होनी चाहिए कि हर भारतीय का प्रथम दायित्व उस भाषा के प्रति होना चाहिए जो वास्तव में भारत की हो, न कि
किसीके द्वारा थोपी गई ! इसके अतिरिक्त संविधान के द्वारा भी हिंदी राष्ट्रिय
संपर्क-भाषा अधिकृत है, अतः हर भारतीय को चाहिए कि वो अपनी क्षेत्रीय भाषा को तो
आगे ज़रूर लाए, पर ये बात अवश्य मन में रखे कि हिंदी के लिए भी उसीका दायित्व है,
क्योंकि हिंदी भी भारत की ही भाषा है ! एक ऐसी भाषा जिसके बहुसंख्यक भाषी तो इस
देश में हैं, पर फिर भी वो राष्ट्रभाषा नही है, तिसपर अंग्रेजी जैसा विकट
प्रतिद्वंधी उसके सामने है ! अगर इन बातों के प्रति हम अभी सजग नहीं हुए, तो वो समय दूर नही, जब इस हिंदीभाषी राष्ट्र की आगामी पीढ़ियो के लिए इस देश का हिंदीभाषी होना इतिहास की बात होगी ! वो अंग्रेजी बोलते परिवार में जन्मेंगे, अंग्रेजी बोलते समाज में पलेंगे-बढ़ेंगे और सिर्फ अंग्रेजी ही सीखेंगे, क्योंकि तब शायद हमारे देश में हिंदी होगी ही नही, या बहुत ही कम होगी !
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